jwalamukhi , valcano, World Geography
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ज्वालामुखी-
ज्वालामुखी का तात्पर्य उस छिद्र अथवा दरार से है ,जिसका संबंध पृथ्वी के आंतरिक भाग से होता है ,और जिसके माध्यम से तप्त गैस ,तरल लावा ,राख , जलवाष्प आदि बाहर आते है |
ज्वालामुखी क्रिया के अंतर्गत मैग्मा के निकलने से लेकर धरातल या उसके अंदर विभिन्न रूपों में इसके ठंडा होने की प्रक्रिया शामिल होती है |
ज्वालामुखी क्रिया के दो रूप होते है |
1. धरातल के नीचे भूगर्भ में होने वाली प्रक्रिया - बैथोलिथ , फैकोलिथ, लैकोलिथ, तथा डाइक
2. धरातल के ऊपर होने वाली प्रक्रिया -इनमे प्रमुख है |
○ ज्वालामुखी
○ गेसर- ऐसा छिद्र या दरार जिससे गर्म जल तथा वाष्प तीव्रता से निकलता है ( ज्वालामुखी क्रिया के दौरान )|
○ धुआरे -ऐसा छिद्र या दरार जिससे गैस तथा वाष्प निकलता है ( ज्वालामुखी क्रिया के दौरान
ज्वालामुखी के प्रकार -
○ सक्रियता के आधार पर
○ उद्गार के आधार पर
सक्रियता के आधार पर - तीन प्रकार के होते है
1. सक्रिय ज्वालामुखी -
ऐसे ज्वालामुखी जिनसे सदैव धूल ,धुआँ ,वाष्प ,राख ,लावा आदि पदार्थ निकलते रहते है ,सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते है वर्तमान मे इनकी संख्या 500 से अधिक है |
भारत मे एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अंडमान निकोबार द्वीप समूह के बैरन द्वीप मे स्थित है
किलायू - हवाई द्वीप (USA)
माउंट एटना - सिसली द्वीप
stromboli - लिपारी द्वीप (भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ )
मेरापी (सर्वाधिक सक्रिय )-इंडोनेशिया
2.प्रसुप्त ज्वालामुखी -
ऐसे ज्वालामुखी जिसमे निकट अतीत मे उद्गार नहीं हुआ है ,लेकिन इसमे कभी भी उद्गार हो सकता है ,प्रसुप्त ज्वालामुखी कहलाते है |
विसुवियस -इटली का
फ्यूजियामा -जापान का
क्राकाटाओ- इंडोनेशिया का
नारकोंडम द्वीप मे -अंडमान निकोबार का
3. शांत ज्वालामुखी -
ऐसा ज्वालामुखी जिसमें ऐतिहासिक काल से कोई भी उद्गार नहीं हुआ है ,और जिसमें पुनः उद्गार होने की संभावना नहीं हो , शांत ज्वालामुखी कहलाते है |
कोहसुल्तान एवं देमबंद -ईरान का
माउंट पोपा- म्यांमार का
किलिमज़ारों - तंजानिया का
चिंबराजों - इक्वाडोर का
एकांकागुआ -एंडीज पर्वत श्रेणी का
उद्गार के आधार पर - दो प्रकार के होते है |
1. केन्द्रीय उद्भेदन -
जब ज्वालामुखी उद्भेदन किसी एक केन्द्रीय मुख से भारी धमाके के साथ होता है ,तो उसे केन्द्रीय उद्भेदन कहते है | ये विनाशात्मक प्लेटो के किनारों के सहारे होता है ,ये कई प्रकार के होते है जिसमे पीलियन प्रकार के ज्वालामुखी सबसे अधिक विनाशकारी होते है |
2. दरारी उद्भेदन -
भू -गर्भिक हलचलों से भू पर्पटी की शैलों या चट्टानों मे दरारें पड़ जाती है | इन दरारों से लावा धरातल पर प्रवाहित होकर निकलता है ,जिसे दरारी उद्भेदन कहते है | ये रचनात्मक प्लेटो के किनारों के सहारे होता है |
ज्वालामुखी के अंग -
जब लावा ज्वालामुखी छिद्र के चारों तरफ क्रमशः जमा होने लगता है तो ज्वालामुखी शंकु का निर्माण होता है | जब जमाव अधिक हो जाता है तो शंकु काफी बड़ा हो जाता है तथा पर्वत का रूप धारण कर लेता है तो उसे ज्वालामुखी पर्वत कहते है | इस पर्वत के ऊपर लगभग बीच में एक छिद्र होता है जिसे ज्वालामुखी छिद्र कहते है | इस छिद्र का धरातल के नीचे भू -गर्भ से संबंध एक पतली नली से होता है जिसे ज्वालामुखी नली कहते है जब ज्वालामुखी के छिद्र बड़ा हो जाता है तो उसे ज्वालामुखी का मुख (volcanic crater) कहते है | जब घसाव या अन्य कारण से ज्वालामुखी का विस्तार अत्यधिक हो जाता है तो उसे कॉल्डेरा (caldera)कहते है |
कुल सक्रिय ज्वालामुखी का अधिकांश प्रशांत महासागर के दोनों तटीय भाग द्वीप चापों तथा समुद्री द्वीपों के सहारे पाया जाता है | इसलिए इसे प्रशांत महासागर का अग्नि वलय (fire ring of the pacific ocean) कहा जाता है |
नोट-
ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप ही एक मात्र महाद्वीप है जहां एक भी ज्वालामुखी नहीं है |
विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी पर्वत -कोटोपैकसी (इक्वाडोर ) सक्रिय ज्वालामुखी है |
विश्व की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी -ओजोस डेल सलाडो (एंडीज़ पर्वत ,अर्जेन्टीना )|